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जीवन को ओरम और आश्चर्य से भरें-3 का भाग 2

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इसलिए ईश्वर ने एक भाषा का आविष्कार किया, जिसे बाईबिल में "शब्द" कहा जाता है, और जब हम उसी भाषा में आपस में बात करते हैं, हमें कोई समस्या नहीं होती, क्योंकि वह भाषा ईश्वर का शब्द है, ईश्वर है। और जब हम उस भाषा को जान जाते हैं, हम ईश्वर से एकाकार हो जाते हें। और हमें अपना मूल यादरहता है कि हम सभी एक ही पदार्थ से निर्मित हैं, सभी एक ही पिता की संतानें हैं, और हम सच्चे भाई और बहन हैं।

हमारे व्यवहारिक समूह में, हमारे पास सभी प्रकार की राष्ट्रीयता वाले लोग होते हैं, सभी प्रकार के धार्मिक आस्थावान होते हें, किन्तु हम साथ साथ काम करते हैं शांति और भाईचारे के साथ जैसे कि हम एक दूसरे को हजारों सालों से जानते हों, जिस क्षण हम एक दूसरे को पहली बार देखते हैं। क्यों? इसका कारण है हम अंदर की एक ही भाषा में बात करते हैं। और हम समझ जाते हैं एक दूसरे को उच्च संवेदनशीलता के बारे में।

हम अब इस (भीतरी) स्वर्गीय संगीत को सुन सकते हैं जब हम रह रहे होते हैं, ताकि हम समझ सकें कि ईश्वर हमें क्या सिखाना चाहता है, स्वर्ग की ओर से क्या- क्या निर्देश हैं, ईश्वर की क्या इच्छा है, ताकि हम इस संसार में गलत काम न करें। और फिर हम अपने जीवन को स्वर्ग के नियमानुसार अधिक भाईचारे के साथ जिएंगे।

वास्तव में, अनेक रोगी लोग ईश्वरीय शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेने के बाद दोबारा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते हैं। किन्तु इसे दीक्षा का कारण नहीं होना चाहिए। हमें ईश्वर की शरण में आना चाहिए क्योंकि हम केवल ईश्वर को जानना चाहते हैं। किसी लाभ के लिए नहीं, किसी अल्पकालिक प्राप्ति या प्रसिद्धि या किसी के लिए नहीं जो क्षणभंगुर हो और भौतिक हो।
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